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इ॒दम॑कर्म॒ नमो॑ अभ्रि॒याय॒ यः पू॒र्वीरन्वा॒नोन॑वीति । बृह॒स्पति॒: स हि गोभि॒: सो अश्वै॒: स वी॒रेभि॒: स नृभि॑र्नो॒ वयो॑ धात् ॥

English Transliteration

idam akarma namo abhriyāya yaḥ pūrvīr anv ānonavīti | bṛhaspatiḥ sa hi gobhiḥ so aśvaiḥ sa vīrebhiḥ sa nṛbhir no vayo dhāt ||

Pad Path

इ॒दम् । अ॒क॒र्म॒ । नमः॑ । अ॒भ्रि॒याय॑ । यः । पू॒र्वीः । अनु॑ । आ॒ऽनोन॑वीति । बृह॒स्पतिः॑ । सः । हि । गोभिः॑ । सः । अश्वः॑ । सः । वी॒रेभिः॑ । सः । नृऽभिः॑ । नः॒ । वयः॑ । धा॒त् ॥ १०.६८.१२

Rigveda » Mandal:10» Sukta:68» Mantra:12 | Ashtak:8» Adhyay:2» Varga:18» Mantra:6 | Mandal:10» Anuvak:5» Mantra:12


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अभ्रियाय-इदं नमः-अकर्म) वेदवाणी को प्राप्त हुए विद्वान् के लिए स्वागत करते हैं (यः पूर्वीः-अनु-आनोनवीति) जो पुरातन-शाश्वतिक वेदवाणियों का भली प्रकार प्रवचन करता है (सः-बृहस्पतिः-हि) वेद का स्वामी वह परमात्मा (गोभिः) इन्द्रियों के द्वारा (सः-अश्वैः) व्यापनशील मन बुद्धि चित्ताहंकारों से (सः-वीरेभिः) वह प्राणों द्वारा (सः-नृभिः) वह रक्तवाहक नाड़ियों द्वारा (नः-वयः-धात्) हमारे लिए जीवन धारण कराता है ॥१२॥
Connotation: - वेदवाणी को प्राप्त वेदवक्ता के लिए नमस्कार-स्वागत आदि करना चाहिए। उस वेदज्ञान का स्वामी परमात्मा शाश्वतिक वेदवाणियों का आदि सृष्टि में उपदेश करता है। वह इन्द्रियों के द्वारा मन बुद्धि चित्त अहङ्कारों के द्वारा और प्राणों, रक्तनाड़ियों के द्वारा शारीरिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन को प्रदान करता है ॥१२॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अभ्रियाय-इदं नमः-अकर्म) वेदवाचं प्राप्ताय “वाग्वा-अभ्रिः” [श० ६।४।८।५] खल्विदं नमः कुर्मः (यः-पूर्वीः-अनु-आनोनवीति) यः पुरातनीः शाश्वतीः वाचः परम्परया समन्तात् प्रवक्ति ब्रवीति “नोनुवन्तः-भृशं शब्दायन्ते” [ऋ० ४।२२।४ दयानन्दः] (सः-बृहस्पतिः-हि) स हि वेदपतिः (गोभिः) इन्द्रियैः (सः-अश्वैः) व्यापनशीलैर्मनोभिरन्तःकरणैः (सः-वीरेभिः) सः प्राणैः “प्राणा वै दश वीराः” [श० १२।८।१।१२] (सः-नृभिः) रक्तनेत्रीभिर्नाडीभिः (नः-वयः-धात्) अस्मभ्यं जीवनं दधाति ॥१२॥